Sunday, January 3, 2010

03-01-2010 by राजीव रंजन

कैसे हो देव और दीप,
देख रहे हो, समय कितनी तेजी से भाग रहे हैं। मानों पलक-झपकते रात्रि-विहान। लेकिन ऐसा नहीं है। एक दिन को राउंड-राउंड बीतने में 24 घंटे का सफर तय करना होता है। प्रत्येक घंटे में 60 पड़ाव आते हैं। हर पड़ाव को ग ुजारने के लिए 60 लम्हें होते हैं। यानी हर लम्हा अनमोल और बेशकीमती है। इसे यों ही बर्बाद कर देना मुर्खता है। है न!
बच्चों, हमें चाहिए कि हम हर लम्हें में कुछ नया कर गुजरने की तबीयत रखें। कुछ नया सीखें, कुछ नया गुनगुनाये। दुनिया तेजी से बदल रही है। लोग भी बदलाव के गिरफ्त में हैं। अब तो ‘सूचना-क्रांति’ का जमाना है। तकनीक की घुसपैठ ने आदमी के मस्तिष्क में यांत्रिक बौछार कर दिया है। एटीएम कार्ड, पैन कार्ड, मोबाइल कार्ड, सिम कार्ड और न जाने कितने कार्ड हैं, जिनका रिकार्ड जेहन में रखना अनिवार्य है।
अगर किसी को मेल करना हो, और उसका आईडी नहीं पता, तो आप मेल नहीं कर सकते। अगर एटीएम कार्ड का पिन नंबर याद न रहा, तो आप पैसा नहीं निकाल सकते। अगर किसी का मोबाइल नंबर नहीं पता, तो आप लाख चाहकर भी उस बंदे से बात नहीं कर सकते। यानी तकनीक और तकनीक के ढांचें में फिट बैठने के लिए यह जरूरी है कि हम तकनीक के न्यूनतम जरूरत की पूर्ति करें। उनकी यह आवश्कता यानी ‘टेक्नीकल रिक्वायरमेंट’ सरंक्षण की मांग करते हैं। हमेशा यादास्त को दुरूस्त रखने की दरख्वास्त करते हैं। यह चाहते हैं कि आप हमारी सेवा लें, लेकिन उसके लिए आपका भी उसमें हिस्सेदारी होना चाहिए। ताली एक हाथ से नहीं बजती। अब देखो, तुम्हारे दादाजी ही लाख हिचकिचाहट के बावजूद कंप्यूटर सीख ही गए। तनिक मुसीबत मोल लेने के बाद वही तकनीक कितनी मददगार साबित हो गई है, दादा जी से पुछ कर देख लो।
दरअसल, समय के साथ समाज का स्वरूप बदलता है और आदमी का हुलिया भी। उसे जमाने के साथ कदमताल मिलाकर चलना ही पड़ता है। अब सूचनाएं ‘फाइल बंद’ नहीं रह गई हैं। अब उनका सार्वभौमिक महत्व है। लोग सूचनाओं को हर क्षण टटोलने, उसमें संसोधन और संवर्धन के लिए तत्पर हैं। सूचनाओं की बढ़ती मांग ने एक नई लहर या कहें क्रांति को जन्म दिया है। यह किसी राष्ट्र के समृद्धि का प्रतीक है। संपन्न और विकसित देश के लिए तकनीकी रूप से ‘अपडेट’ रहना आवश्यक है। आप अपनी सभ्यता को न छोड़े। अपनी संस्कृति से विलग न हो। लेकिन सभ्यता और संस्कृति का दुहाई देते हुए कुपमंडूक बने रहना भी ठीक नहीं है। अपने को नई चीजों से जोड़ना जरूरी है।
एक जमाने में यह माना जाता था कि सूर्य पृथ्वी के चारो ओर चक्कर काटता है। महान खगोलवैज्ञानिक कोपरनिकस ने अपने शोध-अनुसंधान और प्रयोग द्वारा यह साबित कर दिया कि सूर्य केन्द्र में रहता है और पृथ्वी सहित सभी खगोलिग ग्रह उसका चक्कर काटते हैं। इसी तरह डाल्टन ने किसी तत्व के सूक्ष्मतम कण परमाणु को अविभाज्य बताया था, आज परमाणु के भीतर की संरचना और इलेक्ट्राॅन, प्रोटाॅन और न्यूट्राॅन की गतिविधियों तथा उनकी वास्तविक स्थिति से भला कौन अनभिज्ञ है।
बच्चों, समय आदम य ुग से आज के आधुनिक युग में यों ही प्रवेश नहीं की है। अन्वेषी मनुष्य ने नानाकिस्म के यत्न -प्रयत्न द्वारा सच का थाह लगाया है। उसे जांच की कसौटियों पर खरा उतारा है। फिर उसे सिद्धांत रूप में गढ़ा है। तुमलोगों को भी एक अन्वेषक की भांति सदा सत्य की जांच करनी चाहिए। क्योंकि पुराने मान्य तथ्य भी भविष्य के लिए गलत या बेमतलब साबित हो सकते हैं। पुराने तथ्यों के संदर्भ में नवीन तथ्यों का सत्यापन ही मनुष्य की वैचारिक विकास का मूल स्रोत है। इसे सदैव स्मरण में रखना चाहिए। यह आगत भविष्य में नई संभावनाओं के लिए ‘स्पेस’ मुहैया कराता है। चलो, सो जाओ...गुड नाईट।

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